" रोमन[अंग्रेजी]मेंहिन्दी-उच्चारण टाइप करें: नागरी हिन्दी प्राप्त कर कॉपी-पेस्ट करें "
"रोमन[अंग्रेजी]मेंहिन्दी-उच्चारण टाइप करें:नागरी हिन्दी प्राप्त कर कॉपी-पेस्ट करें"
कबीरा खड़ा बाज़ार में ,लिए लुकाठी हाथ जो फूँके घर आपणा, चले हमारे साथ|| निंदक नेणे राखि आँगन कुटी छवाये || रहिमन धागा प्रेम का , तोड़ो मत चटकाय : : टूटे फिर न जुड़े , जुड़े तो गाँठ पड़ जाए | |
"सफर के बीच "
जब-जब थक जाईए , रूकइए सुस्ताइए , अपनी यादों की छाँव में , जरा सोचिये भी सफ़र में , क्या -क्या ले निकले थे, उम्र के इस छोर आने तक , क्या खोया क्या पाया , इन्सानी रिश्तों को कौन सहेज सका , कितना इनको, मैं खुद भी जी पाया , गोया कि सफ़र अभी है बाकी|
|
"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"
इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "बताईयेगा कितना सफल रहा |
जीवन की इस सँध्याबेला में,
समय के चौराहे पर खड़ा अकेला मैं,
ज़र्जर देह संग काँपते स्वर और अधर हैं,
राह कठिन और पग लड़खडा़ रहे,
वो दूर कहीं दूर पर आयु के झरोखे ,
मुझे बुला रहे ,मुझे बुला रहे ॥
बस विदा गान की रीत है बाकी , श्वासों की डोली में , यादें बन कर बैठीं दुल्हन ; सब मिल गाओ गीत विदा के अब प्राणों की यह बारात , जब चल पड़ी ,चल पड़ी, चल पड़ी ॥ | | है देखी वक्त की ये रीत निराली , पहले काटे न कटती थीं रातें , उगता न था सूरज भी जल्दी, पर चाँद छुपा जल्दी आई दुपहरी, समय न ठहरा गुजरा निष्ठुर मौन , जब प्रिय मिलन की रात चल पड़ी, चल पड़ी ,चल पड़ी,।। |
© Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008
Back to TOP
4 टिप्पणियाँ:
ेक सीख देती सार्थक कविताजरा सोचिये भी सफ़र में ,
क्या -क्या ले निकले थे,
उम्र के इस छोर आने तक ,
क्या खोया क्या पाया ,
इस सुन्दर सार्थक कविता के लिये धन्यवाद्
रचना अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई।
दो तीन दिन से लगातार ३-४ टिपण्णी लिख चुकी पोस्ट करते समय मिट जाता है मन तो ख़राब हुआ मगर आशावादी बन कोशिश जारी रही .इतनी लम्बी टिपण्णी लिखी रही मगर गड़बड़ होने की वज़ह से अब चंद शब्दों में काम चला रही हूँ .आपकी सभी रचना पढ़ी बहुत सुन्दर है .निंदक नियरे ......इस दोहा के सम्बन्ध में यही कहूँगी कि जिसका धयान रखते ,जिसके हित के बारे में सोंचते है उसे ही सही राह कि सलाह देते है .किसी के हित के लिए सोचना कहना कुछ गलत नहीं होता .इससे तो हमें बेहतर बनने का मौका मिलता है .आप ब्लॉग पे आये बहुत ही अच्छा लगा .नमस्कार .
आपकी यह कविता, सचमुच सोचने को प्रेरित करती है..
उम्र का कोई भी पड़ाव हो मूल्यांकन करते ही रहना चाहिए की क्या खोया, क्या पाया..
थोडा रुकें, सोचे, और जो भी बचा है समेटते हुए बाकि का सफ़र तय करें...आगे बढें..
अंत में बस इतना ही रहेगा..
बहुत अच्छा/अच्छी इंसान था/थी
या फिर..
चलो जी अच्छा हुआ..
एक टिप्पणी भेजें