" इन्द्रधनुषी पुल "
विमी जी एक चितेरा कभी मुझे भी मिला था, बचपन में बनाता हुआ इन्द्रधनुषी पुल , मैंने उससे पूछा भी था , यह क्या करते हो , वह बोला भगवान के घर , जाने को पुल बनाता हूँ मैंने फ़िर पूछा था , लेमन - चूस खाओगे , तब चाकलेट नहीं मिलते थे , यही मिलता था एक पैसे के दस , पर मुझे ऐसे ऐसे दो पुल बना कर दे दो । पूछा गया - क्या करोगे उत्तर -भगवन से मिलाने जाउगा प्रश्न - क्यों ? कहूँगा सदगुर दद्दा को वापस भेजो | पर दो क्यों ? एक जाने एक वापस आने के लिए!! { आप के लिए }
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5 टिप्पणियाँ:
सबसे पहिले, आपका ह्रदय से धन्यबाद की आप हमरे ब्लॉग कुटिया में अपना चरण धरें और टिपण्णी का प्रसाद दे कर आये हैं, बहुत खुसी होती है आपका स्नेह जब मिलता है, बस आप ऐसा ही सतरंगी सीढ़ी बनाते रहिये और और हमरे जैसे लोगन को आसमान में चाहुंपाते रहिये, बाकि चितेरा से जो गुफ्तगू हुई आपकी बढ़िया लगा है, बधाई का गिफ्ट हमहूँ दे रहे हैं, रख लीजिये...
जनाब, दो का तो चक्कर ही ख़त्म कर दिया कोर्ट ने अब तो सब तरफ एकल वाद ही चल रहा है
माफ़ कीजिये. यह रचना आध्यात्मिकता से ओ़त प्रोत है और मैंने इसमें समलैंगिकता का मसला जबरदस्ती घुसेड दिया है. पर इसकी इतनी चर्चा है की अब हर सम्बन्ध को इसी तराजू पर तौलने की कोशिश हो रही है. पर आपकी रचना पर टिपियाने का कोई इरादा नहीं था मेरा, न ही मेरी यह आदत है पर भूल की और ध्यान दिलाने का धन्यवाद.
बहुत सुन्दर भजन सुनवाया आपने ....
अदा जी बहुत सुन्दर बाते कही मैं भी सहमत हूँ या यू कहे उसे दोहराती हूँ .रचना सुन्दर है .
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