" उमर वो बचपन की "
" उमर वो बचपन की "
अब क्या भूलूं क्या याद करूँ , लौटेगी न उमर वो बचपन की , वक्त से चाहे जितनी विनती-फरियाद करूँ || माँ का गुस्सा , दीदी की मनुहार , दद्दा का इकरार , बाबूजी का प्यार, भूले-भटके मिलते थे कभी-कभी , माँ नरम ,बाबूजी गरम ,दीदी चि़ड़चिड़,दद्दा के तेवर , ब्याज में भौजाई से तकरार जमा-पूंजी यही बचपन की, वो सब रह-रह याद करूँ उम्र जो गुज़री पचपन की || अब क्या भूलूं क्या याद करूँ , लौटेगी न उमर वो बचपन की , वक्त से चाहे जितनी विनती-फरियाद करूँ ||
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3 टिप्पणियाँ:
jo beet gayaa so beet gaya..
pyaar mohabbat reet gayaa..
kya bhoolu kyaa yaad karoo..
chalo gaao ab ek geet nayaa//
माँ नरम ,बाबूजी गरम ,दीदी चि़ड़चिड़,दद्दा के तेवर ,
ब्याज में भौजाई से तकरार जमा-पूंजी यही बचपन की,
वो सब रह-रह याद करूँ उम्र जो गुज़री पचपन की ||
बस यही रह जाती है जमा-पूँजी...
और हम जीते चले जाते हैं, इनके साथ..
बहुत ही सार्थक रचना, मन में रच-बस गयी है यह...
shahi hai
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