"साथी तमाम गए"
"साथी तमाम गए"
बरस गयी बरस गयी रे बदरिया , कमरे माँ बैठब ऐसै ही रहा मुहाल, बिजुरी जाय के बाद कै तौ पूछौ न हाल, पंखौ गरम-गरम भपका मारे ड्रैगन के नाय || खुला कम्प्यूटर जो वोल्टेज लायी बिजुरिया, चलै लाग की-बोरड पै फटाफट अंगुरिया , काओ लिखी सोचत बैठा रहेन खुजात खोपडिया, फिर सोचेन लिखडाली इक पाती मा हाल गुजरिया|| बडन रामजुहार लिखेन,गेदाहरन दुलार लिखेन, गरमी मा गेदाहरन संग मैइके बैठी उनका......?लिखेन, मुस्तफा भाईयो गुज़र गए,मनी गए जयराम गए , जाने केकै बरी बा बचपन से पचपन तक कै साथी तमाम गए || मन उदास बा जल्दी आवा अचार कटहल भरवा-मिरचा लावा , तुहार हाल का बा ,गेहूं सरसों अच्छा-सस्ता पावा लदाय लावा , पैसा भेजाए देब घर कै घिउ जुगाड़ होए पाच किलो लेत आवा , कुछ होए या नहोए मन उदास बा तू जल्दी से जल्दी आवा ||
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2 टिप्पणियाँ:
पहली बार आपका ब्लोग देखा तो जैसे इसी पर अटक गयी ब्लोग की साज सज्जा के साथ नये कलेवर मे एक सुन्दर कवित पढ कर मन प्रसन्न हो गया बहुत सुन्दर भाव हैं बधाई
मन उदास बा जल्दी आवा अचार कटहल भरवा-मिरचा लावा ,
तुहार हाल का बा ,गेहूं सरसों अच्छा-सस्ता पावा लदाय लावा ,
पैसा भेजाए देब घर कै घिउ जुगाड़ होए पाच किलो लेत आवा ,
कुछ होए या नहोए मन उदास बा तू जल्दी से जल्दी आवा ||
अब इ बतावल जाय की उन्खा दरसन भेल की नाही ...
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