'' बस यूँ ही ''
'' बस यूँ ही ''
जिंदगी की रहगुज़र , जाने कितना भटकेंगे , कितने साथ मिलेंगे , कितने हाथ हैं छूटेंगे , जीना है टुकडों-टुकडों में, जाने कितने टुकड़े सहजेगे , कितने टुकड़े अभी और भी टूटेंगे|| ********************************************** श्याम सखा "श्याम " के ब्लॉग पर पोस्ट एक कविता से प्रेरित {सादर} कुछ यक्ष प्रश्न भी होते है , कैसे इनसे छुटकारा पाएंगे , लहरों -तुफानो से कर यारी , खुद तो पार निकल जायेंगे , छोड़ी जो मझधार कश्ती , औरों को कैसे पार लगायेंगे ?
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2 टिप्पणियाँ:
कुछ यक्ष प्रश्न भी होते है ,
कैसे इनसे छुटकारा पाएंगे ,
लहरों -तुफानो से कर यारी ,
खुद तो पार निकल जायेंगे ,
छोड़ी जो मझधार कश्ती ,
औरों को कैसे पार लगायेंगे ?
बहुत ही सुन्दर पंक्तियाँ
जिंदगी की रहगुज़र ,
जाने कितना भटकेंगे ,
कितने साथ मिलेंगे ,
कितने हाथ हैं छूटेंगे ,
सत्य वचन !!
बहुत अच्छी अभिव्यक्ति !!
आप बधाई के पात्र हैं ..
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