सोमवार, 29 जून 2009

" उमर वो बचपन की "




" उमर वो बचपन की "



अब क्या भूलूं क्या याद करूँ ,
लौटेगी उमर वो बचपन की ,
वक्त से चाहे जितनी विनती-फरियाद करूँ ||
माँ का गुस्सा , दीदी की मनुहार ,
दद्दा का इकरार , बाबूजी का प्यार,
भूले-भटके मिलते थे कभी-कभी ,
माँ नरम ,बाबूजी गरम ,दीदी चि़ड़चिड़,दद्दा के तेवर ,
ब्याज में भौजाई से तकरार जमा-पूंजी यही बचपन की,
वो सब रह-रह याद करूँ उम्र जो गुज़री पचपन की ||
अब क्या भूलूं क्या याद करूँ ,
लौटेगी उमर वो बचपन की ,
वक्त से चाहे जितनी विनती-फरियाद करूँ ||






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रविवार, 28 जून 2009

"साथी तमाम गए"




"साथी तमाम गए"



बरस गयी बरस गयी रे बदरिया ,
कमरे माँ बैठब ऐसै ही रहा मुहाल,
बिजुरी जाय के बाद कै तौ पूछौ न हाल,
पंखौ गरम-गरम भपका मारे ड्रैगन के नाय ||
खुला कम्प्यूटर जो वोल्टेज लायी बिजुरिया,
चलै लाग की-बोरड पै फटाफट अंगुरिया ,
काओ लिखी सोचत बैठा रहेन खुजात खोपडिया,
फिर सोचेन लिखडाली इक पाती मा हाल गुजरिया||
बडन रामजुहार लिखेन,गेदाहरन दुलार लिखेन,
गरमी मा गेदाहरन संग मैइके बैठी उनका......?लिखेन,
मुस्तफा भाईयो गुज़र गए,मनी गए जयराम गए ,
जाने केकै बरी बा बचपन से पचपन तक कै साथी तमाम गए ||
मन उदास बा जल्दी आवा अचार कटहल भरवा-मिरचा लावा ,
तुहार हाल का बा ,गेहूं सरसों अच्छा-सस्ता पावा लदाय लावा ,
पैसा भेजाए देब घर कै घिउ जुगाड़ होए पाच किलो लेत आवा ,
कुछ होए या नहोए मन उदास बा तू जल्दी से जल्दी आवा ||






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गुरुवार, 25 जून 2009

Hindi Blog Tips: अपने डोमेन पर शिफ़्ट होने के फ़ायदे और नुकसान

Hindi Blog Tips: अपने डोमेन पर शिफ़्ट होने के फ़ायदे और नुकसान



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मंगलवार, 23 जून 2009

'' बस यूँ ही ''


'' बस यूँ ही ''




जिंदगी की रहगुज़र ,

जाने कितना भटकेंगे ,

कितने साथ मिलेंगे ,

कितने हाथ हैं छूटेंगे ,

जीना है टुकडों-टुकडों में,

जाने कितने टुकड़े सहजेगे ,

कितने टुकड़े अभी और भी टूटेंगे||

**********************************************



श्याम सखा "श्याम " के ब्लॉग पर पोस्ट एक कविता से प्रेरित {सादर}


कुछ यक्ष प्रश्न भी होते है ,

कैसे इनसे छुटकारा पाएंगे ,

लहरों -तुफानो से कर यारी ,

खुद तो पार निकल जायेंगे ,

छोड़ी जो मझधार कश्ती ,

औरों को कैसे पार लगायेंगे ?







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शुक्रवार, 19 जून 2009

" काग़ज़ भी पिघलेगा ",




"काग़ज़ भी पिघलेगा, "

यह ज़हां है इक मेला ,

हर इक ज़िंदगानी सजाती ,

अपना-अपना खेला ,

रूप पर तो बहरूप है ही,

पर बहुतों ने बहरूप पर भी,

रूप का लगाया झमेला !!

क्या कभी देखा नहीं ,

किसी को भीड़ में भी अकेला,

किसी का मौन भी मुखर होता है,

पर कभी पढ़ना तुम किसी की ,

प्रखर-मुखरता के पीछे का लेखा ||

तेरे ही आंसू से काग़ज़ भी पिघलेगा,

लेखनी कांपेगी, शब्द खो जायेंगे , उस पीड़ा से ,
सारी अनुभूतियाँ सारी सवेदानाएं सारे भावः ,
फ़िर से निरक्षर हो जायेंगे ||

जिस क्षण तुम,
इस अन्तरिक्षीय निशाब्द्धता को ,
शब्द रूप देपाओगे ,
उसी क्षण से ,
भवभूति-वाल्मीकि-कालिदास से हो जाओगे ||







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मंगलवार, 16 जून 2009

'' इसी लिए तो नीलकंठ नहीं .....''



निराशाओं के हलाहल-सागर मध्य से ,

असफलताओं का बोझ ले,

पुनः-पुनः संघर्ष करते गुज़रना,

नीलकंठ होने की मात्र अनुभूति ही दे पाता है ,

और हो बाध्य तभी हम ,

स्वीकार पाते हैं 'माँ फलेषु कदचिना ' ||

हाय रे फ़िर भी हम नीलकंठ हो पाते ,

इन्सां हैं हम चुभती है,

असफलताओं की फांस ; कभी-कभी ,

रिश्ते हमारे बना इन्ही का नश्तर हैं चुभाते,

इस पीड़ा संग राग-द्वेष निर्लिप्त नहीं हम ,

इसी लिए तो नीलकंठ नही हो पाते |

नीलकंठ नही हो पाते||







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रविवार, 14 जून 2009

" काश मैं भी हो पता नीलकंठ "



" काश मैं भी हो पता नीलकंठ "



कोशिश कर कभी सुनना विरानो के गीत ,
तन्हाई की सिसकियां भी होंगी ऐ अनजाने मीत !

खामोशी का संगीत जब भी आप गुनगुनायेंगे ,
लय की लरज़ में मुझे ही अकेला खडा पायेगे !

अपनी हर हर नज्म में ,कर्ण की रुसवाई को जीता हुआ
मुझे ही पायेंगें ,भीष्म की तन्हाईयों का विष पीता हुआ!

घायल
रूहों का कारवां लिए,काँधे पे उठाये उम्मीदों का सलीब ;
सत्य-आग्रही गाँधी मैं हुआ नही, ,कहाँ से लाता ईसा सा नसीब !!

इस धरा की सारी रुसवाई : तनहाई का विष मैं पी जाता : जी जाता :
मैं भी होता अगर नीलकंठ ,
हो पाता मैं भी काश नीलकंठ !!
हो पाता मैं भी काश नीलकंठ !! मैं भी काश नीलकंठ!!
मैं भी नीलकंठ !!








यह
पूर्व प्रकाशित कविता आप के समक्ष कुछ संशोधनों के साथ पुनः प्रस्तुत है,पुरानी हटा दी गई है


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" रोमन[अंग्रेजी]मेंहिन्दी-उच्चारण टाइप करें: नागरी हिन्दी प्राप्त कर कॉपी-पेस्ट करें "

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विजेट आपके ब्लॉग पर

TRASLATE

Translation

" उन्मुक्त हो जायें "



हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



कदमों के निशां

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