" काग़ज़ भी पिघलेगा ",
"काग़ज़ भी पिघलेगा, "
यह ज़हां है इक मेला , हर इक ज़िंदगानी सजाती , अपना-अपना खेला , रूप पर तो बहरूप है ही, पर बहुतों ने बहरूप पर भी, रूप का लगाया झमेला !! क्या कभी देखा नहीं , किसी को भीड़ में भी अकेला, किसी का मौन भी मुखर होता है, पर कभी पढ़ना तुम किसी की , प्रखर-मुखरता के पीछे का लेखा || तेरे ही आंसू से काग़ज़ भी पिघलेगा, लेखनी कांपेगी, शब्द खो जायेंगे , उस पीड़ा से , सारी अनुभूतियाँ सारी सवेदानाएं सारे भावः , फ़िर से निरक्षर हो जायेंगे || जिस क्षण तुम, इस अन्तरिक्षीय निशाब्द्धता को , शब्द रूप देपाओगे , उसी क्षण से , भवभूति-वाल्मीकि-कालिदास से हो जाओगे ||
|
6 टिप्पणियाँ:
बहुत ही सुन्दर पोस्ट और ब्लोग और आपकी रचना भी ..............क्या कहने
तेरे ही आंसू से काग़ज़ भी पिघलेगा,wonderful..
सुन्दर शब्द-मनहर प्रस्तुति
श्याम सखा
इन गज़लों को पूरा पढें यहां
१उम्र भर साथ था निभाना जिन्हें
फासिला उनके दरमियान भी था
२‘.जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस......’
http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें
लेखनी कांपेगी, शब्द खो जायेंगे , उस पीड़ा से ,
सारी अनुभूतियाँ सारी सवेदानाएं सारे भाव ,
फ़िर से निरक्षर हो जायेंगे ||
अद्भुत !
और मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी करने का आभार । सरस्वती का आशिर्वाद हम सब पर बना रहे । हमें उनका भक्त ही रहने दें प्लीज़ ।
sadhuwaad........jitna kaha jaye utna kam.....
bahut hi accha likha hai....shandaar
जिस क्षण तुम,
इस अन्तरिक्षीय निशाब्द्धता को ,
शब्द रूप देपाओगे ,
उसी क्षण से ,
भवभूति-वाल्मीकि-कालिदास से हो जाओगे ||
bemisaal..
bahut khoob likha hai aapne..
एक टिप्पणी भेजें