'' बदरा क्यूँ वर्षा लायें ? ? ? ''
"प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने हैं मेंटे" प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने हैं मेंटे, पहले भिन्न भिन्न वृक्ष उन्हें लुभाते थे , देख झूमते प्राकृतिक वनों और मयूर-यूथों का नृत्य , समझ उसे आमन्त्रण हो मंत्र मुग्ध , मेघा भी स्वयं नृत्य करने लग जाते , लय द्रुत होते ही बदरा छलक छलक जाते , सावन भादो में बदरा यूँ बरखा लाते थे , देख नृत्यान्त में छीजी गागर अपनी, शेष जल भी यहीं उडेल , फिर चल पड़ती उनकी प्रति-यात्रा , पुनः पुनः जल लाने को ; प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने मेंटे, सुन्दर पंक्तिबद्ध बाग लगाये, मयूर-जूथ नर्तक भी लुप्त हुये , विविधता के आकर्षण नष्ट हुए , रुके क्यों बदरा सरपट जो राह पाये || |