'' बदरा क्यूँ वर्षा लायें ? ? ? ''
"प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने हैं मेंटे" प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने हैं मेंटे, पहले भिन्न भिन्न वृक्ष उन्हें लुभाते थे , देख झूमते प्राकृतिक वनों और मयूर-यूथों का नृत्य , समझ उसे आमन्त्रण हो मंत्र मुग्ध , मेघा भी स्वयं नृत्य करने लग जाते , लय द्रुत होते ही बदरा छलक छलक जाते , सावन भादो में बदरा यूँ बरखा लाते थे , देख नृत्यान्त में छीजी गागर अपनी, शेष जल भी यहीं उडेल , फिर चल पड़ती उनकी प्रति-यात्रा , पुनः पुनः जल लाने को ; प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने मेंटे, सुन्दर पंक्तिबद्ध बाग लगाये, मयूर-जूथ नर्तक भी लुप्त हुये , विविधता के आकर्षण नष्ट हुए , रुके क्यों बदरा सरपट जो राह पाये || |
23 टिप्पणियाँ:
प्रकृति कि मदमस्त रंगों से भरी कविता
प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने मेंटे,
सुन्दर पंक्तिबद्ध बाग लगाये, मयूर-जूथ नर्तक भी लुप्त हुये ,
विविधता के आकर्षण नष्ट हुए ,
अपने आप से ही कितना jwalant prasn किया है ........... सच में praakriti को hamne ही nasht किया है ......... लाजवाब bhaav हैं आपकी रचना में ........... pranaam है मेरा
शरीर की कोशिकाओं को दीजिये नयी ताकत
'' निंदक नेणे राखिये ,
आँगन कुटी छवाए||"
ji ninda karne jaisa to kuch bhi nahi hai...
...jab hoga wo bhi batayienge...
abhi to sawan ka anand lene do:
"देख नृत्यान्त में छीजी गागर अपनी, शेष जल भी यहीं उडेल , फिर चल पड़ती उनकी प्रति-यात्रा , पुनः पुनः जल लाने को ; "
badiya....
badiya
aur haan aapka koi purana post bhi padh leta hoon, aakhir mitron ka anurodh kaise taal sakte hain?
https://www.blogger.com/comment.g?blogID=5192098414234791393&postID=4961942186720053896&page=1
humne to aapki purani post padh li asha karta hoon aap bhi apne purane comment padhte honge nahi padhte to uppar padh lein...
..badhiya likhte hain ji aap !!
:)
सच है. पहले प्रकृति के साथ खिलवाड करते हैं फ़िर रोते हैं और उसी को कोसते भी हैं.सुन्दर रचना.
मेघों के रूठ जाने की इस अनूठी परिभाषा के लिए साधुवाद.रचना सुन्दर लगी.
सम-सामयिक समस्या उठा ली आपने तो , ध्यान तो लोगो का जाता है पर आँखें बाद कर लेते हैं
अब हमें प्रकृति को अपना दोस्त बनाना ही पडेगा ताकि बादल लौटें और हम झूमें -नाचें - गायें
bilkul sahi baat kahi aapne !! hum apne hi kiye ka phal bhugat rahe hain.
बहुत खूब.. हैपी ब्लॉगिंग
बहुत दिन कुछ अच्छे ब्लोग्ज़ पर नहीं जा पाई थी जिस मे ये बलाग भी है इसके लिये क्षमा चाहती हूँ बहुत सी अच्छी रचनायों से वंचित रही धीरे धीरे पढूँगी बहुर सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति हौ आज जिस तरह प्रकृितिक संपदाओं का ह्रास हो रहा है आभार
बहुत दिन कुछ अच्छे ब्लोग्ज़ पर नहीं जा पाई थी जिस मे ये बलाग भी है इसके लिये क्षमा चाहती हूँ बहुत सी अच्छी रचनायों से वंचित रही धीरे धीरे पढूँगी बहुर सुन्दर और सटीक अभिव्यक्ति हौ आज जिस तरह प्रकृितिक संपदाओं का ह्रास हो रहा है आभार
nice
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !!!
सुन्दर रचना....सुन्दर अभिव्यक्ति...
बहुत सुंदर विचार हैं.
समझ उसे आमन्त्रण हो मंत्र मुग्ध , मेघा भी स्वयं नृत्य करने लग जाते , लय द्रुत होते ही बदरा छलक छलक जाते , सावन भादो में बदरा यूँ बरखा लाते थे ,
देख नृत्यान्त में छीजी गागर अपनी, शेष जल भी यहीं उडेल , फिर चल पड़ती उनकी प्रति-यात्रा , पुनः पुनः जल लाने को ;
आज एक बार फिर उपस्थित हूँ आपकी इस कविता को पढने के लिए....
बेहद प्रभावपूर्ण और अनुभूतिपूर्ण कविता.....
वर्षा ऋतू का ऐसा मनोरम चित्रण !!!
बहुत सुन्दर...
वाह
अत्यंत उत्तम लेख है
काफी गहरे भाव छुपे है आपके लेख में
.........देवेन्द्र खरे
http://devendrakhare.blogspot.com
आपकै कमेन्ट से हमका बड़ी ताकत मिली अब आगे लिखै कै
जोस और बढ़ गा अहै . आप असमर्थता के बावजूद हमार ब्लॉग पढ़ा गा
यहिसे बड़ा और कौन 'कमेन्ट' होये हमरे ताइं . हमार कोसिस ई है कि
अवधी मा एक बार फिर से गंभीर लेखन कै सुरुआत हुवे , अपने अस्तर पै
हम जूझत रहब लेकिन हम चाहित है कि और लोगन का यहि दिसा मा
आप प्रोत्साहित कीन जाय ..
... पायलागी ..
नए साल कै बधाई ..
बहुत ही सुन्दर दर्शन.....
कुछ पंख्तिया आपके सम्मुख रखना चाहुइंगा
बड़ती हुई दरख्त का सुखा हुआ पत्ता
आधियों की फुँकार से उड़ता हुआ पत्ता
कोई रिश्ता,नाता सिर्फ़ खून से ही नही पनपता
देखो यहाँ प्रकृति की गोद में पलता हुआ पत्ता अक्षय-मन
अक्षय-मन "!!कुछ मुक्तक कुछ क्षणिकाएं!!" से
▬● अच्छा लगा आपकी पोस्ट को देखकर... साथ ही आपका ब्लॉग देखकर भी अच्छा लगा... काफी मेहनत है इसमें आपकी...
नव वर्ष की पूर्व संध्या पर आपके लिए सपरिवार शुभकामनायें...
समय निकालकर मेरे ब्लॉग्स की तरफ भी आयें तो मुझे बेहद खुशी होगी...
[1] Gaane Anjaane | A Music Library (Bhoole Din, Bisri Yaaden..)
[2] Meri Lekhani, Mere Vichar..
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