रात यूं वीरान अँधेरी है
"ये खामोशी जीने दो "
शुक्र खुदा ' हर रात यूं वीरान अँधेरी है ',
कहते है दर्द से दर्द को राह ए सुकूँ होती है !
सिसकियाँ दूर तक सुनी जाती हैं विरानो में ,
श्श्श्श....रात को अपनी ये खामोशी जीने दो !
हर गम ए दिल के दर्द ए गम को राह पाने दो ,
न हो नासूर हर घाव,हर ज़िन्दगी आतिश-फशां !
पर रोते चेहरे भी हों न जाएँ रुसवा ,बेगानों में ,
इसी लिए हर रात वीरानी है हर रात अँधेरी है !!!
श्श्श्श....रात को अपनी ये खामोशी जीने दो !
शुक्र खुदा ' हर रात यूं वीरान अँधेरी है ',
कहते है दर्द से दर्द को राह ए सुकूँ होती है !
सिसकियाँ दूर तक सुनी जाती हैं विरानो में ,
श्श्श्श....रात को अपनी ये खामोशी जीने दो !
हर गम ए दिल के दर्द ए गम को राह पाने दो ,
न हो नासूर हर घाव,हर ज़िन्दगी आतिश-फशां !
पर रोते चेहरे भी हों न जाएँ रुसवा ,बेगानों में ,
इसी लिए हर रात वीरानी है हर रात अँधेरी है !!!
श्श्श्श....रात को अपनी ये खामोशी जीने दो !
[ आतिश -फशां = ज्वालामुखी = volcano]
4 टिप्पणियाँ:
ये वीरानी खामोशी का अपना ही एक शुकून है !
बहुत खूब. दर्द कहाँ कम है , ये रात ही कम पड़ जाती है अक्सर
द्विवेदी जी की जय हो! रात की वीरानी में रात की रानी मिले। कविता के रूप में, कल्पना के रूप में या फ़िर सिर्फ़ रूप में।
शुभकामनाएं
लवस्कार
पर रोते चेहरे भी हों न जाएँ रुसवा ,बेगानों में ,
इसी लिए हर रात वीरानी है हर रात अँधेरी है !!!
bahut khoob.....
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