" अपनी ज़िन्दगी : :अपनी धूप "
हर इक को,
अपने हिस्से की धूप मिली ;
किसी को मिला घनेरा साया ,
किसीको मिली जेठ दुपहरी ;
ज़िन्दगी क्या खूब मिली खूब मिली,
बहुत खुब मिली | |
ईश्वर भी छिपता ना फिरता ,
इंसानों से आज ;
स्वर्ग से गर ' हव्वा 'संग उसे भी,
निकाला ना होता:
स्वर्ग नया हुई तब से ये धरती
जहाँ उनदोनो को ;
ज़िन्दगी क्या खूब मिली,खूब मिली ,
बहुत खूब मिली ||
6 टिप्पणियाँ:
बहुत सही कहा हर एक को अपने अपने हिस्सेका ही मिलता है ।
बहुत अच्छे !
PS: please remove word verification . it serve no purpose except inconvenience.
सही बात सुंदर शब्दों मैं
हर किसी को अपने अपने हिस्से की धूप मिल ही जाती है
प्रारब्ध में जो है वही प्राप्त होता है। इससे कोई नहीं बचता।
nice post
thanks
कबीरा सब बैरी नहीं, सबकी अपनी सोच
साफ़ दिखेगा आइना,आँसू मन से पोंछ !
दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएँ।
एक टिप्पणी भेजें