गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

" अपनी ज़िन्दगी : :अपनी धूप "

हर इक को,
अपने हिस्से की धूप मिली ;
किसी को मिला घनेरा साया ,
किसीको मिली जेठ दुपहरी ;
ज़िन्दगी क्या खूब मिली खूब मिली,
बहुत खुब मिली | |


ईश्वर भी छिपता ना फिरता ,
इंसानों से आज ;
स्वर्ग से गर ' हव्वा 'संग उसे भी,
निकाला ना होता:
स्वर्ग नया हुई तब से ये धरती
जहाँ उनदोनो को ;
ज़िन्दगी क्या खूब मिली,खूब मिली ,
बहुत खूब मिली ||

6 टिप्पणियाँ:

Asha Joglekar 16 अक्तूबर 2008 को 3:36 am बजे  

बहुत सही कहा हर एक को अपने अपने हिस्सेका ही मिलता है ।

Satish Saxena 16 अक्तूबर 2008 को 8:18 am बजे  

बहुत अच्छे !

PS: please remove word verification . it serve no purpose except inconvenience.

दिगम्बर नासवा 19 अक्तूबर 2008 को 7:32 pm बजे  

सही बात सुंदर शब्दों मैं
हर किसी को अपने अपने हिस्से की धूप मिल ही जाती है

betuki@bloger.com 20 अक्तूबर 2008 को 10:28 am बजे  

प्रारब्ध में जो है वही प्राप्त होता है। इससे कोई नहीं बचता।

Girish Kumar Billore 24 अक्तूबर 2008 को 2:23 am बजे  

nice post
thanks
कबीरा सब बैरी नहीं, सबकी अपनी सोच
साफ़ दिखेगा आइना,आँसू मन से पोंछ !

Vinay 27 अक्तूबर 2008 को 4:21 pm बजे  

दीपावली पर हार्दिक शुभ कामनाएँ।

" रोमन[अंग्रेजी]मेंहिन्दी-उच्चारण टाइप करें: नागरी हिन्दी प्राप्त कर कॉपी-पेस्ट करें "

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" उन्मुक्त हो जायें "



हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



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