" ज़िन्दगी-ज़िन्दगी- ज़िन्दगी "
ढूँढ ले अपनी मंजिल कोई , यारा कर दे शुरू सफ़र अपना;
ज़िंदगी की इस राह-गुज़र पर, मिले कभी कई क़ाफिले होंगें
कभी शब-ए-बियाँबां बसर होगा, गुलज़ार वतन भी होंगें ;
गुल होंगे तो ख्वार भी होंगे धूप होगी तो छावं भी होगी ,
सपनों का शहर होगा ; ख्वाहिशों का म-क़बर होगा;
इसी ज़ुस्तजु-ए-मंजिल का नाम ही तो ज़िन्दगी है |
kabeeraa { म-क़बर=क़ब्रिस्तान, जुस्तजू= तलाश या खोज ,ख्वार=कांटे=दुःख,तक़लीफें, शब=रात }
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