सोमवार, 25 मई 2009

" सफर के बीच "



" ज़िन्दगी की नियति  "
===
="भटकन ~ थकन ~ मंजिल ~ चलना:सफर "

'भटकन
होगी लम्बी वक़्त की रहगुज़र भी ,
लम्बी मिलेगी जितनी ज़िन्दगी ,
भटकने:ढूँढने के खेल के
रोमांस रोमांच में
कब कैसे गुज़रा वक़्त ?
खुद वक़्त ही नहीं जान पाता

थकन
जब-जब थक जाईए ,
रूकइए सुस्ताइए ,
अपनी यादों की छाँव में ,
जरा सोचिये भी ,
क्या -क्या ले कर थे निकले ,
उम्र के इस छोर आने तक ,
क्या खोया क्या पाया ,
रिश्तों को कौन
सहेज सका , कितना ,
खुद मैं भी जी पाया ,
गोया कि सफ़र अभी है बाकी|






2 टिप्पणियाँ:

वन्दना अवस्थी दुबे 3 फ़रवरी 2010 को 10:46 pm बजे  

बहुत सुन्दर कविता है. सच है वक्त कब बीत जाता है पता ही नहीं चलता.
इतना लम्बा अन्तराल क्यों? आप थे कहां अभी तक?

डॉ. मनोज मिश्र 4 फ़रवरी 2010 को 9:49 pm बजे  

उम्र के इस छोर आने तक ,
क्या खोया क्या पाया ,
रिश्तों को कौन
सहेज सका , कितना ,
खुद मैं भी जी पाया ,
गोया कि सफ़र अभी है बाकी|
बहुत सुन्दर.....

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" उन्मुक्त हो जायें "



हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



कदमों के निशां

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