" चाँद मुसाफिर "
अन्य ब्लागरों के ब्लॉग पर किए कमेंट्स के संग्रह में से कुछ पुष्प अब आप की 'टिप्पणियों ' हेतु आप के समक्ष प्रस्तुत हैं -----------
"समर" मुस्कुराती रहे यूँ ही जिंदगी कभी कभी ;
यारां कभी न ओढ़ना, साये गम -ओ -उदासियों के ,
वक्त ए दौरां से ही चुरा लाईये खुशियों के कुछ पल;
लम्हा -लम्हा सही , जीलेंगें ज़िन्दगी कभी कभी \\
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"समर" सहर हो कैसे मावस की रातों ,
ठिठुर ठहरा जो चाँद मुसाफिर ;
चांदनी - तन्हाई दोनों हुईं साकी ,
ठहर चाँद हुआ जो हम-प्याला;
यूँ लम्बी हुईं जाडों में मावस कि रातें ,
आईये जाम यादों के छलकाईये
जग देखी औरों की तो चाँद कहेगा ,
आप तो फ़क़त अपनी सुनाईये ||
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रूबरू ; संवेदना है /
मौन : सांत्वना है
स्पर्श : सुकूं है /
शब्द : रुदन है =??? : आँसू हैं /
मुस्कान : इबादत है /
हँसी : समर्पण है/
मिलन : ब्रह्म है
जो असीमित है : अनन्त है !!!!!??????\/
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अपना ये दर्द ही तो हम जीते हैं,
आज तक सुकूं को जी सका है कौन ?
सुकूं जो जी रहे ,कब्रों में सोते है मौन
?_________________________???
"समर" औरों के दर्द का एहसास ,
अपने दिलों में भी जगाईये ;
गोयाकि बनिएगा मत मसीहा
फ़क़त रहबर का फ़रायज़ निभाईए ||
2 टिप्पणियाँ:
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कहावत है कि साहित्य समाज का दर्पण है अन्योनास्ति में आपका प्रयास सार्थक है .किन्तु विविधा पर स्टेम-सेल्स के अलावा कुछ मिला नहीं और ब्लाग अभी पढने बाक़ी हैं . कहीं आपने फोन न० भी दिया है क्या ?
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