सोमवार, 10 नवंबर 2008

हंगामा है क्यूँ है बरपा ?

मैं नही जानता कि मेरी इस कविता / नज्म को पाठक गण किस श्रेणी में लेंगे मैं पहले ही स्पष्ट कर चुका हूँ कि मूलतः मैं कवि नही हूँ ,ओर जो हूँ वह भूल सा रहा हूँ क्योंकि 'नून-तेल -लकडी ' के चक्कर ने उसे से दूर कर दिया है | आज जो प्रस्तुत कर रहा हूँ वह आज के समाज कि भावनात्मक सच्चाई ही है , हर सच्चे भारतीय कि मनो इच्छा ,मनो भावना है ऐसा मुझे लग रहा है | वास्तव में कल वार्षिक परम्परा के अनुसार 'गुरु नानक देव जी ' के जन्म उत्सव [कार्तिक पूर्णिमा 2008 नवम्बर 13 दिन गुरुवार ] के उपलक्ष्य में शोभायात्रा निकली थी ओर आज सुबुं समाचार -पत्रों में प्रज्ञा ठाकुर केस के सम्बन्ध में पढ़ कर कल से ही गुनगुना रहा 'देग-तेग फतह ' [कल इसका उदघोष शोभा यात्रा में हो रहा था ] आज 2008 नवम्बर 11 मंगलवार को इस रूप में सामने आया है | वैसे लगे हाथ मैं स्पष्ट कर दूँ कि मै भी सहज धारी सिक्ख ही हूँ ; यहाँ जनसामान्य का एक भ्रम दूर कर दूँ कि सिक्खी का आरंभ 'गुरु नानक देव जी से होता है , दसवें गुरु 'गुरु गोविन्द सिंह जी ' ने तो उसके सैनिक रूप -अंग को खालसा -पंथ के रूप में सामाजिक रूप से मान्यता दिला कर ,एक क्रांति का सूत्रपात करा था वे युग-दृष्टा : युग-सृष्टा महाऋषि थे ; जिस प्रकार प्राचीन युगों में मंत्र दृष्टा ऋषि हुआ करते थे , वे आधुनिक युग में उसी परम्परा के ध्वजा वाहक थे , | सामान्यतः इस ब्लॉग पर मैं बातें ना कर के अपने मन के भाव कुछ पंक्तियों में व्यक्त करने का प्रयत्न करता हूँ | कविता [मेरे अनुसार ] पूर्णता असम्पादित है कही बोलने में अटपटा लगे ,प्रवाह रुके तो क्षमा प्रार्थी हूँ \ टिप्पणियाँ अवश्य दें :------>

हे गोविन्द : हे रण छोड़

बरपा क्यूँकर इतना हंगामा है ,
अरे हमने तो आज आपही की ज़ुबां बोली है ;
हम तो वीतराग 'वैर आगी ' यानि वैरागी हैं ,
इस आग में जब तपते है ,कुन्दन हो जाते हैं |
बहुत हुआ यह धूनी भड़काओ ,
अपनी लगाई इस आग में भस्म हो जाओगे ;
बार-बार उकसाओ मत आजमाओ हम को ,
हमें तो बस अपना कर्तव्य निभाना है |
बरपा क्यूं कर इतना हंगामा है .....जुबाँ बोली है ||
हम तो ख़ुद ही सेना हैं,
सेना का हर सैनिक उत्साह हम से ही पाता है ;
"जो बोले सो निहाल " हो जाता है ,
कभी ' बम बम ' तो कभी 'हर हर महादेव ';
तो कभी 'देग तेग फतेह ' -
का उद् घोष लगाता है ||
बरपा क्यूँ कर इतना हंगामा है .............जुबाँ बोली है||
'नाही टरों शुभ करमन ते ',
मांग ' शिवा से वर एही ';
हम ' लड़े दीन के हेत , लड़े दीन के हेत ',
पुरजा पुरजा कट मरे तभो छाडे खेत 'हैं ,
बरपा क्यूँ कर इतना हंगामा है .............जुबाँ बोली है ||
हे 'गोविन्द' हे 'राया ',
किस रण में व्यस्त हो ,
'रण छोड़ ' इस ' दास ' की अरज पे
" गुरु " बन तुम फ़िर से आजाओ ,
किसी गुफा में तपलीन :सोते से ;
आज के ' माधव सिंह ' को
फ़िर से ढूंढ के लाओ ,
माधव सिंह जब 'बन्दा बैरागी ' बन जागेगा
इस देश से लगता है तब ही आतंक वाद भागेगा ||
बरपा क्यूँकर इतना हंगामा है ,
अरे हमने तो आज आपही की ज़ुबां बोली है |||
समर रतन






3 टिप्पणियाँ:

pritima vats 10 नवंबर 2008 को 8:53 pm बजे  

बहुत खूब लिखा है आपने। वाकई फिर से कृष्ण जैसे किसी गुरु की अतिआवश्यकता है इस धरा को।
सिक्ख गुरु के बारे में भी अच्छी जानकारी दी है।

हरकीरत ' हीर' 24 जुलाई 2009 को 11:50 pm बजे  

जान कर खुसी हुई आप सिख हैं ....कविता भावों और ओज से लबरेज है ....बधाई ...!!

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" उन्मुक्त हो जायें "



हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



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