tag:blogger.com,1999:blog-51920984142347913932024-03-13T06:31:54.006+05:30" कबीरा : : अन्योनास्ति "कबीरा खड़ा बाज़ार में ,लिए लुकाठी हाथ
जो फूँके घर आपणा, चले हमारे साथ||
निंदक नेणे राखि आँगन कुटी छवाये ||
रहिमन धागा प्रेम का , तोड़ो मत चटकाय : :
टूटे फिर न जुड़े , जुड़े तो गाँठ पड़ जाए | |'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.comBlogger31125tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-83020755295237787252010-02-16T11:42:00.000+05:302010-02-16T11:42:27.471+05:30
mata ki jay ho
"कबीरा"
'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-15690222302180860962009-08-19T13:13:00.008+05:302010-02-14T17:25:49.440+05:30'' बदरा क्यूँ वर्षा लायें ? ? ? ''
"प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने हैं मेंटे"
प्रकृति के अनगढ़ जंगल हमने हैं मेंटे,पहले भिन्न भिन्न वृक्ष उन्हें लुभाते थे ,देख झूमते प्राकृतिक वनों और मयूर-यूथों का नृत्य ,
समझ उसे आमन्त्रण हो मंत्र मुग्ध ,मेघा भी स्वयं नृत्य करने लग जाते ,लय द्रुत होते ही बदरा छलक छलक जाते ,सावन भादो में बदरा यूँ बरखा लाते थे ,
देख नृत्यान्त में छीजी गागर अपनी,शेष जल भी यहीं उडेल ,फिर चल पड़ती उनकी प्रति'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com23tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-68542771131820936442009-07-21T05:12:00.016+05:302010-02-16T11:50:14.239+05:30'' कुछ करना है कुछ कर जाना है '' ,
" कुछ करना है : : कुछ करजाना है "
'' कुछ करना है कुछ कर जाना है ''
हर दिन साठ घटी का ही होता है ,
कुछ करना है कुछ कर जाना है ,
और वक्त लाएं कहाँ से समझ नही आता ,
पल-छिन पल-छिन कर हर दिन है गुजर जाता,
अपने ही वक्त की झोली से कुछ वक्त चुराएँ ,
?---,,,,... ....,,,,।---?'
खुली आँखों में आओ '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com20tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-69867474969151373042009-07-19T21:34:00.016+05:302010-02-14T19:00:34.175+05:30'' संवेदनाएं - 3 ''
संवेदनाएं -3
''मंत्रविद्ध ''
हाय सारी अनुभूतियाँ मंत्रविद्ध सी ,निश्चल हो गयीं, स्वर-वाणी भी खोयी ;भाव-सागर में जो मैं डूबा फिर न उतराया,संवेदनाओं की आंधी में मेरा शब्दकोष छितराया ||********************************************
कलम है ,ख्याल है , बता ये किस के दिल का हाल है ?
घुमाई जो गर्दन,तेरी नज़र से निगाह मिली ,अपना अक्स साफ नजर आया ,आईना न था कोई सामने ,मेरी निगाहों का भरम कोई या तेरी '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-87329276195377765992009-07-18T12:42:00.018+05:302010-02-16T12:00:39.727+05:30संवेदनाएं-2
नीचे दी रचना श्री दिगंबर नासवा, जी की एक रचना से प्रेरित , इसनें भाव तो उनके ही हैं ,यहाँ तक की लगभग सभी शब्द भी उन्ही के हैं ,मैं उनकी सम्बंधित रचना पढ़ प्रशंसात्मक टिप्पणी लिखने का प्रयत्न कर रहा था कि मैं यह कर बैठा ,उनकी उस रचना के उतरार्ध को छंद बद्ध करने का प्रयत्न करने कि गुस्ताखी कर बैठा उनकी अनुमति से उनको समर्पित करते हुए मैं इसे कबीरा पर '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-89663301375731103702009-07-09T13:32:00.011+05:302009-07-19T22:16:36.015+05:30" मेरे शब्दों की पूंजी तेरे पास होगी ," " अपना क्या " अपना क्या' ज़िन्दगी ',की शाम हुयीउम्र यूँ ही तमाम हुयी ,ज्यूँ सूरज डूबेगात्यों ही रूह उसके नाम हुयी,मुक्त हुआ मैं इस एकान्तिक अभिशाप से ,पर रखना यकीं फिर आऊंगा ,रूप बदल जायेगा ?पहचान पाओगी ?तब तुम्हे कोईइन्द्रधनुषी गीत सुनाऊंगा ,आऊंगा और शब्दों की सृष्टिपुनः पुनः रचाऊंगा,मेरे शब्दों की पूंजी तेरे पास होगी ,जब मांगू दे देना वरना ,फिर से अभिशप्त हो जाऊंगा !!!फिर '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-12133681016830981362009-07-08T22:05:00.010+05:302009-07-11T20:47:47.026+05:30" इन्द्रधनुषी पुल " एक चितेरा विमी जीएक चितेरा कभी मुझे भी मिला था,बचपन में बनाता हुआ इन्द्रधनुषी पुल ,मैंने उससे पूछा भी था ,यह क्या करते हो ,वह बोला भगवान के घर ,जाने को पुल बनाता हूँमैंने फ़िर पूछा था ,लेमन - चूस खाओगे ,तब चाकलेट नहीं मिलते थे ,यही मिलता था एक पैसे के दस ,पर मुझे ऐसे ऐसे दो पुल बना कर दे दो ।पूछा गया - क्या करोगेउत्तर -भगवन से मिलाने जाउगाप्रश्न - क्यों ?कहूँगा सदगुर दद्दा को वापस '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-30902295915131845452009-07-08T19:18:00.010+05:302010-02-16T13:05:07.196+05:30" सुनो ध्यान लगाय जो रहा ''बताऊँ'',"
"हाय-बताऊँ "
कहत कबीरा सुनो भाई साधो ,छोड़ कमंडल लकुटिया माला , सुनो ध्यान लगाय जो रहा ''बताऊँ'', दरबारे अकबरी रहा बैठा -ठाला, मुग़ल-ए-आज़म चढ़ तख्त बैठल उदास ,भूला रहे सबै दरबारी लेहऊँ स्वास , बस अकबरै भरें -रह निस्वास ,कहैं कहाँ हौ बीरबल जल्दी आवा पास, जल्दी आवा पास और नाही कौनो आस,
वैद हकीम ज्ञानी ओझा गुनिया सबै हेराने,दरबार परवेसे बीरबल तभई,झुक-झुक किहिन'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-3371292926237058102009-07-04T12:08:00.005+05:302009-07-11T22:05:56.530+05:30"प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता ""प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता " " प्रकृति-चक्र "हमारी भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का जन्म एवं परिपोषण भी मूलतः प्रकृति के सानिध्य में स्वयं प्रकृति द्वारा किया गया था |, आज हम आधुनिकता की दौड में विकास के नाम पर उसी प्रकृति से दूर भाग रहे हैं ,हम यह भूल रहें हैं कि विकास का वास्तविक भावार्थ ' प्रकृति के और निकट जाकर उससे सामंजस्य बैठाते हुए उन्नति करना '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-49619421867200538962009-07-02T10:46:00.004+05:302009-07-11T23:09:21.459+05:30"मेरा यक्ष-प्रश्न " रामक्यों आक्षेपित बार बार करते हो राम को ?कुपुत्र कहलाते जो वन ना जातेलेते न जो अग्नि-परीक्षा ,धर्म विरुद्ध तुम ही कहते !धोबी के वचन को भरी सभा जो मर्म न देते ,मात्र रघुवंशी चक्रवर्ती साम्राट राम तुम ही कहते |क्या बार-बार के उन्ही आक्षेपों की है ग्लानि यह ?जो अयाचित, राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते होऔर भी आगे बढ,राम को भगवान के सिंहासन पर बैठाते हो ||कोई'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-77131205692541223282009-07-01T19:38:00.002+05:302009-07-02T07:38:32.786+05:30" सफर के बीच" "सफर के बीच " जब-जब थक जाईए , रूकइए सुस्ताइए , अपनी यादों की छाँव में , जरा सोचिये भी सफ़र में , क्या -क्या ले निकले थे, उम्र के इस छोर आने तक , क्या खोया क्या पाया , इन्सानी रिश्तों को कौन सहेज सका , कितना इनको, मैं खुद भी जी पाया , गोया कि सफ़र अभी है बाकी| <!-- AddThis Button BEGIN --><!-- AddThis Button END -->'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-20436343935682857072009-06-29T14:01:00.003+05:302009-07-01T10:18:14.674+05:30" उमर वो बचपन की "" उमर वो बचपन की " अब क्या भूलूं क्या याद करूँ ,लौटेगी न उमर वो बचपन की ,वक्त से चाहे जितनी विनती-फरियाद करूँ || माँ का गुस्सा , दीदी की मनुहार , दद्दा का इकरार , बाबूजी का प्यार, भूले-भटके मिलते थे कभी-कभी ,माँ नरम ,बाबूजी गरम ,दीदी चि़ड़चिड़,दद्दा के तेवर ,ब्याज में भौजाई से तकरार जमा-पूंजी यही बचपन की, वो सब रह-रह याद करूँ उम्र जो गुज़री पचपन की ||अब क्या भूलूं क्या याद'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-14377051258999581852009-06-28T14:55:00.005+05:302009-06-29T14:04:09.730+05:30"साथी तमाम गए""साथी तमाम गए" बरस गयी बरस गयी रे बदरिया ,कमरे माँ बैठब ऐसै ही रहा मुहाल,बिजुरी जाय के बाद कै तौ पूछौ न हाल,पंखौ गरम-गरम भपका मारे ड्रैगन के नाय ||खुला कम्प्यूटर जो वोल्टेज लायी बिजुरिया,चलै लाग की-बोरड पै फटाफट अंगुरिया ,काओ लिखी सोचत बैठा रहेन खुजात खोपडिया,फिर सोचेन लिखडाली इक पाती मा हाल गुजरिया||बडन रामजुहार लिखेन,गेदाहरन दुलार लिखेन,गरमी मा गेदाहरन संग मैइके बैठी उनका......?'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-18571492035703803002009-06-25T22:52:00.001+05:302009-06-25T22:53:40.642+05:30Hindi Blog Tips: अपने डोमेन पर शिफ़्ट होने के फ़ायदे और नुकसानHindi Blog Tips: अपने डोमेन पर शिफ़्ट होने के फ़ायदे और नुकसानHindi Blog Tips: अपने डोमेन पर शिफ़्ट होने के फ़ायदे और नुकसान <!-- AddThis Button BEGIN --><!-- AddThis Button END -->'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-36509112613567024862009-06-23T01:09:00.011+05:302009-07-01T20:47:00.110+05:30'' बस यूँ ही '' '' बस यूँ ही '' जिंदगी की रहगुज़र , जाने कितना भटकेंगे ,कितने साथ मिलेंगे , कितने हाथ हैं छूटेंगे , जीना है टुकडों-टुकडों में, जाने कितने टुकड़े सहजेगे , कितने टुकड़े अभी और भी टूटेंगे||********************************************** श्याम सखा "श्याम " के ब्लॉग पर पोस्ट एक कविता से प्रेरित {सादर} कुछ यक्ष प्रश्न भी होते है , कैसे इनसे छुटकारा पाएंगे , लहरों -तुफानो से '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-32131071590865993612009-06-19T12:11:00.014+05:302009-06-23T00:20:44.616+05:30" काग़ज़ भी पिघलेगा ","काग़ज़ भी पिघलेगा, " यह ज़हां है इक मेला , हर इक ज़िंदगानी सजाती , अपना-अपना खेला , रूप पर तो बहरूप है ही, पर बहुतों ने बहरूप पर भी, रूप का लगाया झमेला !! क्या कभी देखा नहीं , किसी को भीड़ में भी अकेला, किसी का मौन भी मुखर होता है, पर कभी पढ़ना तुम किसी की , प्रखर-मुखरता के पीछे का लेखा || तेरे ही आंसू से'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-33492804053486142982009-06-16T04:19:00.009+05:302009-06-23T00:32:21.605+05:30'' इसी लिए तो नीलकंठ नहीं .....'' निराशाओं के हलाहल-सागर मध्य से , असफलताओं का बोझ ले, पुनः-पुनः संघर्ष करते गुज़रना,नीलकंठ होने की मात्र अनुभूति ही दे पाता है , और हो बाध्य तभी हम , स्वीकार पाते हैं 'माँ फलेषु कदचिना ' || हाय रे फ़िर भी हम नीलकंठ हो पाते , इन्सां हैं हम चुभती है, असफलताओं की फांस ; कभी-कभी , रिश्ते '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-86511464884140707862009-06-14T21:46:00.010+05:302009-06-21T05:35:25.197+05:30" काश मैं भी हो पता नीलकंठ "" काश मैं भी हो पता नीलकंठ " कोशिश कर कभी सुनना विरानो के गीत ,तन्हाई की सिसकियां भी होंगी ऐ अनजाने मीत !खामोशी का संगीत जब भी आप गुनगुनायेंगे ,लय की लरज़ में मुझे ही अकेला खडा पायेगे !अपनी हर हर नज्म में ,कर्ण की रुसवाई को जीता हुआमुझे ही पायेंगें ,भीष्म की तन्हाईयों का विष पीता हुआ!घायल रूहों का कारवां लिए,काँधे पे उठाये उम्मीदों का सलीब ;सत्य-आग्रही गाँधी मैं हुआ नही, ,'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-20456149836706688172009-05-26T12:30:00.004+05:302009-05-26T20:23:57.711+05:30आंसू और तनहाईआंसू और तनहाई याराँ वो तो बेवफा हुआ, गम में जो आँसू , आँखों से जुदा हुआ, ये रिश्ता हों , ना रुसवा, इसीलिएतो लोग, अकेले में ही रोते हैं ||'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-46960388862269864072009-05-25T23:09:00.007+05:302010-02-14T16:29:56.402+05:30" सफर के बीच "
" ज़िन्दगी की नियति "
===="भटकन ~ थकन ~ मंजिल ~ चलना:सफर "
'भटकनहोगी लम्बी वक़्त की रहगुज़र भी ,लम्बी मिलेगी जितनी ज़िन्दगी ,भटकने:ढूँढने के खेल केरोमांस औ रोमांच मेंकब कैसे गुज़रा वक़्त ?खुद वक़्त ही नहीं जान पाता
थकनजब-जब थक जाईए ,रूकइए सुस्ताइए ,अपनी यादों की छाँव में ,जरा सोचिये भी ,क्या -क्या ले कर थे निकले ,उम्र के इस छोर आने तक ,क्या '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-90450266911538985512009-05-19T21:00:00.004+05:302009-05-19T21:05:28.946+05:30" ज़िन्दगी-ज़िन्दगी- ज़िन्दगी " ज़िन्दगी
ढूँढ ले अपनी मंजिल कोई , यारा कर दे शुरू सफ़र अपना;
ज़िंदगी की इस राह-गुज़र पर, मिले कभी कई क़ाफिले होंगें
कभी शब-ए-बियाँबां बसर होगा, गुलज़ार वतन भी होंगें ;
गुल होंगे तो ख्वार भी होंगे धूप होगी तो छावं भी होगी ,
सपनों का शहर होगा ; ख्वाहिशों का म-क़बर होगा;
इसी ज़ुस्तजु-ए-मंजिल का नाम ही kabeeraahttp://www.blogger.com/profile/16379567788959918844noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-3835795005838931662009-03-15T20:25:00.000+05:302009-05-12T05:45:41.065+05:30,"रात यूं वीरान अँधेरी है","रात यूं वीरान अँधेरी है""ये खामोशी जीने दो "शुक्र खुदा ' हर रात यूं वीरान अँधेरी है ', कहते है दर्द से दर्द को राह ए सुकूँ होती है !सिसकियाँ दूर तक सुनी जाती हैं विरानो में ,श्श्श्श....रात को अपनी ये खामोशी जीने दो ! हर गम ए दिल के दर्द ए गम को राह पाने दो , न हो नासूर हर घाव,हर ज़िन्दगी आतिश-फशां !पर रोते चेहरे भी हों न जाएँ रुसवा ,बेगानों में ,इसी लिए हर रात वीरानी है '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-48665299014412723432008-12-14T12:38:00.000+05:302009-05-11T20:04:02.444+05:30रात यूं वीरान अँधेरी है"ये खामोशी जीने दो "शुक्र खुदा ' हर रात यूं वीरान अँधेरी है ', कहते है दर्द से दर्द को राह ए सुकूँ होती है !सिसकियाँ दूर तक सुनी जाती हैं विरानो में ,श्श्श्श....रात को अपनी ये खामोशी जीने दो ! हर गम ए दिल के दर्द ए गम को राह पाने दो , न हो नासूर हर घाव,हर ज़िन्दगी आतिश-फशां !पर रोते चेहरे भी हों न जाएँ रुसवा ,बेगानों में ,इसी लिए हर रात वीरानी है हर रात अँधेरी है !!!'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-78945584222816386452008-12-02T12:37:00.000+05:302009-05-12T05:45:41.065+05:30संवेदनाएं मेरे "कबीरा " ब्लॉग पर एक महिला ने किसी कविता की प्रशंसा कीथी ,धन्यवाद ज्ञापन में वहाँ तक गया क्यो कि उस पर कविताएँ होंगी ऐसा मेरी सोच थी और ऐसा थाभी परन्तु एक कविता वहाँ पर एक कविता में आतंक वादी का शब्द चित्रण दिया था पर वह उसे ग्लोरिफाई करता था वहा टिप्पणी और उन्ही कि दो कविताओं से प्रेरणा ले मैंने भी कुछ लाईने कहने का प्रयत्न किया है | प्रेरणा के लिए मैं '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-5192098414234791393.post-33604302084927679182008-11-12T13:50:00.000+05:302008-11-18T04:22:37.281+05:30"हर भारतीय के पढ़ने योग्य "? साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर की गिरफ्तारी के बाद "हिन्दू आतंकवाद" शब्द चर्चा में है. मैं कई अखबारों के लिए कालम लिखता हूं तो मुझे कहा गया कि आप इस बारे में कुछ लिखिए. लोग जानते हैं कि मैं आजन्म कैथोलिक ईसाई हूं, लेकिन २५ सालों तक दक्षिण एशियाई देशों में रहकर फ्रांस के अखबारों के लिए काम किया है इसलिए मैं इस भू-भाग मैं फैली हिन्दू संस्कृति को नजदीक से जानता समझता हूं.आगे पढ़ने के लिए '' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा ::http://www.blogger.com/profile/02846750696928632422noreply@blogger.com2