गुरुवार, 2 जुलाई 2009

"मेरा यक्ष-प्रश्न "






राम

क्यों आक्षेपित बार बार करते हो राम को ?
कुपुत्र कहलाते जो वन ना जाते
लेते न जो अग्नि-परीक्षा ,धर्म विरुद्ध तुम ही कहते !
धोबी के वचन को भरी सभा जो मर्म न देते ,
मात्र रघुवंशी चक्रवर्ती साम्राट राम तुम ही कहते |
क्या बार-बार के उन्ही आक्षेपों की है ग्लानि यह ?
जो अयाचित, राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते हो
और भी आगे बढ,राम को भगवान के सिंहासन पर
बैठाते हो ||
कोई मेरे इस यक्ष-प्रश्न का उत्तर भी दे पायेगा ,
क्या ? राम सी मर्यादा किसी और ने भी निभाई है?










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6 टिप्पणियाँ:

स्वप्न मञ्जूषा 3 जुलाई 2009 को 3:20 am बजे  

और सीता का क्या, उस जैसी सती कहीं पड़ती है दीखाई, लक्ष्मण सा भाई और उर्मिला जैसी को क्या कहेंगे, फिर राम ही 'पुरुषोत्तम ' क्यों ?

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: 3 जुलाई 2009 को 11:31 am बजे  

अदा जी ,
मैं यहाँ पर आपके प्रश्न को सिरे से ही नकारने की धृष्टता कर रहा हूँ , क्यों कि यहाँ पर केवल राम के सन्दर्भ में ही मैंने पूरे समाज से प्रश्न किये हैं ; सीता का कहीं भी उल्लेख नहीं किया था ,जिस का उल्लेख ही न हो उस के सन्दर्भ में प्रश्न करना कितना उचित है यह निर्ण य तो आप स्वयं लें ?

लगता है आपने मेरी, अंतर्यात्री नामक रचना नहीं पढ़ी उस के 3 रे टुकडे में मैंने कहा है ,

" मत मांगना किसी दुख्तर ए हव्वा से ;
सीता सी अग्नि परीक्षा ,पाकीजगी के सुबूत में।|"


और यह केवल किसी एक सन्दर्भ में नहीं है ' ' दुख्तर - ए- हव्वा ' ' इसी लिए प्रयुक्त है सीता का सन्दर्भ तो प्रतीकात्मक है | अब जब भी उदहारण दिया जाता है प्रसिद्ध सन्दर्भ का ही देतें है , इंग्लैंड में कालिदास के लिए किट्स, शेली या शेक्सपियर ही कहा जायेगा ' जैसे कालिदास संस्कृत के शेक्सपियर हैं ,[ शेक्सपियर ऑफ़ संस्कृत ] इसीप्रकार भारत में उलटा होगा ||


अब आप से मेरा प्रश्न है उत्तर अवश्य दें , क्या आप भी औरों की तरह सीता को राम की छाया मात्र मानती हैं ,क्या उनका कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं स्वीकारति हैं , यही प्रश्न उर्मिला यहाँ तक की केकैयी के बारे में भी करता हूँ ? अगर स्वतंत्र अस्तित्व मानतीं है तो फिर स्वीकारें कि जरुरी नहीं नहीं कि यदि एक का जिक्र चले तो दूसरे का अनावश्यक उल्लेख अवश्य किया जाये ,आवश्यकता होने पर ही उल्लेख होगा |

और इन सब चरितों का जो भी मूल्यांकन किया जाये वह उसी युग की मान्यताओं के अनुसार ही करना पड़ेगा , क्यों की उन्हों ने भी अपना जीवन उसी युग की परम्पराओं मान्यताओं के साथ ही जिया व्यतीत किया था ; अब यह तो सम्भव नहीं है कि उस युग में '' सेर के भाव [ रेट ] से खरी दी वस्तु को किलोग्राम के बटखरे से तौल कर कहें कि उस युग का व्यापारी बेइमान था देखो सेर में इतना कम दिया [ जब कि हम बाँट किलो पद्धति का प्रयोग कर रहे होते है ] |


बातें करने कोतो बहुत है किसी शायर ने कहा है '' थोडी -थोडी पिया करो " वैस ही मैं कहता हूँ " थोडी -थोडी बातें किया करो " हाँ यह बात दीगर है कि ''बातों का पैग पटियाली या पटियालवी हो गया है |

स्वप्न मञ्जूषा 3 जुलाई 2009 को 4:13 pm बजे  

कबीरा जी,

जवाब के लिए धन्यवाद, 'अग्नि परीक्षा','धोबी' का जिक्र करते ही स्वतः सीता की बात मन में आना लाज़मी है, श्री राम के 'मर्यादा पुरुषोत्तम' बनाने में सीता जी की भूमिका को इनकार नहीं किया जा सकता, और युग कोई भी हो लीक से अलग हट कर जो काम करते हैं वही तो युग-पुरुष होते हैं, वरना सेर के ज़माने में सेर की बाट तो सबके पास होगा , याद वही रह जाते हैं जो सेर के खरीदार को किलो में बेच देते हैं , और अब तो मेरी बातों का पैग भी पटियाला हो चुका है, इसलिए अब बस करुँगी, नहीं तो ....
मेरी कविता' है 'पुरुषोत्तम' समय निकाल कर देखें, एक दूसरी कविता भी है 'एकादशानन' और एक तीसरी है 'आज उर्मिला बोलेगी' , मुझे इतना ज्ञान तो नहीं है लेकिन एक स्त्री होने के नाते जो भी नारीगत प्रश्न मेरे ह्रदय में आते हैं पूछती हूँ,
आप आते रहते हैं मेरे ब्लॉग पर यह देख कर बहुत ही अच्छा लगता है, बस ऐसे ही आते रहिएगा,
धन्यवाद,
स्वप्न मंजूषा शैल 'अदा'

समय 5 जुलाई 2009 को 10:56 am बजे  

मर्यादा पुरूषोत्तम कहना, भगवान बना देना।
ये सब मर्यादाओं, आदर्शों के अनुकरणीय व्यवहार से अपने आपको अलग करने की एक मासूम सी अदा है।

वे भगवान थे, वे तो संत है।
और मनुष्य को सारे मनचाहे क्रिया-व्यापार करने की छूट सी मिल जाती है, दलदल की इसी गंदगी के साथ।

यक्ष-प्रश्नों को आम करने का शुक्रिया।

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: 5 जुलाई 2009 को 12:56 pm बजे  

samay ji आप कबीरा पर आये टिप्पणी की उसके लिए मैं हार्दिक रूप से आभारी हूँ धन्यवाद | रही राम क सन्दर्भ में आप की टिप्पणी तो राम को दिया गया मर्यादापुरुषोत्तम का सम्बोधन इस लिए है कि उन्हों ने अपने युग के अनुसार एक उत्तम - श्रेष्ठ पुरुष होने के लिए निर्धारित की गयी सारी मर्यादाएं निभायीं उनका सफलता पूर्वक परिपालन किया तभी उन्हें ''मर्यादापुरुषोत्तम ''कहा गया | ये उसी प्रकार है जिस प्रकार हम आज के युग में ''भारत रत्न '' या '' महावीर चक्र'' या ''लोक नायक '' '' क्रांति दूत '' और लौह- पुरुष आदि संबोधन अपने आधुनिक नायकों को देते हैं और यह किसी राजतन्त्र द्वारा नहीं उस उग के श्रेष्ठतम विद्वत - जनों दवारा दिया गया और जिस सम्बोधन को जन-जन ने सहर्ष स्वीकार किया और युग - युगांतर के अंतराल बाद भी वह संबोधन जन - के हिरदय में बैठा है उनके रक्त में संचार कर रहा है |

दर्पण साह 22 अगस्त 2009 को 11:40 pm बजे  

bhagwan kaun hai kya hai....
...kya wakai hai?

bade contrivertial prashn hain ye !!
kher nain to saakar ishwar ke upar vishwaas nahi kata isliye tatasht ho kar comment de raha hoon...


ek yaksh prashn mera bhi:


धरा में मानव क्यूँ आया है?

शांत चीर के क्या पाया है?

वृहद शूष्म दिखती काया है ।

ह्रदय वस्तु रख लाया है ॥

देह स्वप्न है, माया है ।

रक्त प्रवाह भी छाया है॥

अंधेरों ने ये क्या गया है?

शांत चीर के क्या पाया है?

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TRASLATE

Translation

" उन्मुक्त हो जायें "



हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



कदमों के निशां

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