'' कुछ करना है कुछ कर जाना है '' ,
" कुछ करना है : : कुछ करजाना है " | ||
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कबीरा खड़ा बाज़ार में ,लिए लुकाठी हाथ जो फूँके घर आपणा, चले हमारे साथ|| निंदक नेणे राखि आँगन कुटी छवाये || रहिमन धागा प्रेम का , तोड़ो मत चटकाय : : टूटे फिर न जुड़े , जुड़े तो गाँठ पड़ जाए | |
" कुछ करना है : : कुछ करजाना है " | ||
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"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
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फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"
इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "बताईयेगा कितना सफल रहा |
जीवन की इस सँध्याबेला में,
समय के चौराहे पर खड़ा अकेला मैं,
ज़र्जर देह संग काँपते स्वर और अधर हैं,
राह कठिन और पग लड़खडा़ रहे,
वो दूर कहीं दूर पर आयु के झरोखे ,
मुझे बुला रहे ,मुझे बुला रहे ॥
बस विदा गान की रीत है बाकी , श्वासों की डोली में , यादें बन कर बैठीं दुल्हन ; सब मिल गाओ गीत विदा के अब प्राणों की यह बारात , जब चल पड़ी ,चल पड़ी, चल पड़ी ॥ | | है देखी वक्त की ये रीत निराली , पहले काटे न कटती थीं रातें , उगता न था सूरज भी जल्दी, पर चाँद छुपा जल्दी आई दुपहरी, समय न ठहरा गुजरा निष्ठुर मौन , जब प्रिय मिलन की रात चल पड़ी, चल पड़ी ,चल पड़ी,।। |
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20 टिप्पणियाँ:
अपने ही वक्त की झोली से कुछ वक्त चुराएँ
उन चुराये हुए लम्हों से इक नया वक्त बनाएँ
देखिये, हम हो गए है फर्स्ट प्रतिभागी...
कोशिश है............. आपके जितना सुन्दर तो शायेद ही हो............. आपकी लाजवाब रचना है यह
अपने ही वक्त की झोली से कुछ वक्त चुराएँ ,
कुछ सच्चे लम्हों को फिर से जी जाएँ
नमस्कार जी ,
आपके द्वारा दी गई टिप्स मुझे अच्छी लगी .
धन्यवाद .
आपकी पंक्तियों के साथ कुच्छ कहना चाहती हूँ -
अपने ही वक्त की झोली से कुछ वक्त चुराएँ
कोर का आँसू वहीँ रोक लें , झूमें , नाचें , गायें .|
रेनू शर्मा ....
बहोत बढिया और पोज़िटीव विचारवाली रचना!! कुछ हमने भी प्रयत्न किया है...
अपने ही वक्त की झोली से कुछ वक्त चुराएँ ,
कहीं कोइ अजनबी उसे चुरा ना जाये।
"और शिकायत खुद से-खुद की ही मिटायें"
मेरे दिमाग में तो बस घूम-फ़िर के यही पंक्तियां बार-बार आ रहीं हैं. वैसे दिगम्बर जी की पंक्तियां मुझे बहुत अच्छी लगीं.
अपने ही वक्त की झोली से कुछ वक्त चुराएँ
परोपकार का नन्हा पल भी है खुशियाँ दे जाता
कुछ हलके फुल्के क्षण जी लें -
अपने ही वक्त की झोली से कुछ वक्त चुराएँ
दूसरे की, झोली में सेंध न लगायें.
-- हा. हा. मजाक है. वैसे हमें स्वयं के अलावा दूसरे के समय का महत्त्व भी समझना चाहिए.
apne apne blog ko bahut hi chatkile rango se sajaya hai. bhanwere bhi ayenge
हम जैसे जीते जी मुर्दा मौत के दिन ही हैं मर जाते ,
वे ही मर कर भी हो अमर हैं अनंत-काल जीते रह जातें ||
बेहतरीन लाइनें.
good
अपने ही झोली से कुछ वक्त चुराएँ
कुछ लम्हें ले लें ? नया संसार बनाएँ ?
आपकी रचना तो सुंदर है ही पर यह समस्या वाला प्रयोग भी कमाल का है ।
और पढने लायक कुछ लिख जाएँ
Sundar likha apne...achha laga.
पाखी की दुनिया में देखें-मेरी बोटिंग-ट्रिप !!
कबीरा जी, स्वतन्त्रता दिवस पर आपको शुभकामनाएं.
Sundar koshish.
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. "शब्द सृजन की ओर" पर इस बार-"समग्र रूप में देखें स्वाधीनता को"
आज़ादी की 62वीं सालगिरह की हार्दिक शुभकामनाएं। इस सुअवसर पर मेरे ब्लोग की प्रथम वर्षगांठ है। आप लोगों के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मिले सहयोग एवं प्रोत्साहन के लिए मैं आपकी आभारी हूं। प्रथम वर्षगांठ पर मेरे ब्लोग पर पधार मुझे कृतार्थ करें। शुभ कामनाओं के साथ-
रचना गौड़ ‘भारती’
और वक्त लाएं कहाँ से समझ नही आता ,
पल-छिन पल-छिन कर हर दिन है गुजर जाता,
ati sundar bhagvati ji .jai hind .pahle naam ki khabar nahi rahi ab is jaankaari ke sang tasvir bhi nazar aai .
अच्छा गीत लिखा आपने ,मैं एक पंक्ति जोड़ती हूँ----
कुछ ख़ास काम कर ,जग में ,नाम अमर कर जाएँ
फिलहाल ,मुझे मेरी माता का यही आदेश है ,इसी लिए दिन-रात नयी खोज में जुटी रहती हूँ और उस खोज को आप लोगो तक पहुंचाती भी रहती हूँ
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ अच्छा लगा बहुत कुछ सामग्री पढने के बाद लगा कहीं कोई उदासी है ..इसे छोडें ...देखिये कितने लोग हें यहाँ ब्लॉगजगत में जो कहना है कहें कुछ ओरों की सुने कुछ अपनी कहें ..यू ही कट जायेगा सफर ..शुभकामनाएं
अपने ही वक्त की झोली से कुछ वक्त चुराएँ ,
पर वक्त मुट्ठी से रेत ज्यों सरक जाते है।
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