बुधवार, 8 जुलाई 2009

" इन्द्रधनुषी पुल "






एक चितेरा

विमी जी

एक चितेरा कभी मुझे भी मिला था,
बचपन में बनाता हुआ इन्द्रधनुषी पुल ,

मैंने उससे पूछा भी था ,
यह क्या करते हो ,

वह बोला भगवान के घर ,
जाने को पुल बनाता हूँ

मैंने फ़िर पूछा था ,
लेमन - चूस खाओगे ,

तब चाकलेट नहीं मिलते थे ,
यही मिलता था एक पैसे के दस ,
पर मुझे ऐसे ऐसे दो पुल बना कर दे दो ।

पूछा गया - क्या करोगे
उत्तर -भगवन से मिलाने जाउगा
प्रश्न - क्यों ?
कहूँगा सदगुर दद्दा को वापस भेजो |
पर दो क्यों ?
एक जाने एक वापस आने के लिए!!

{ आप के लिए }




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5 टिप्पणियाँ:

स्वप्न मञ्जूषा 9 जुलाई 2009 को 2:13 am बजे  

सबसे पहिले, आपका ह्रदय से धन्यबाद की आप हमरे ब्लॉग कुटिया में अपना चरण धरें और टिपण्णी का प्रसाद दे कर आये हैं, बहुत खुसी होती है आपका स्नेह जब मिलता है, बस आप ऐसा ही सतरंगी सीढ़ी बनाते रहिये और और हमरे जैसे लोगन को आसमान में चाहुंपाते रहिये, बाकि चितेरा से जो गुफ्तगू हुई आपकी बढ़िया लगा है, बधाई का गिफ्ट हमहूँ दे रहे हैं, रख लीजिये...

admin 9 जुलाई 2009 को 12:15 pm बजे  

जनाब, दो का तो चक्कर ही ख़त्म कर दिया कोर्ट ने अब तो सब तरफ एकल वाद ही चल रहा है

admin 9 जुलाई 2009 को 11:20 pm बजे  

माफ़ कीजिये. यह रचना आध्यात्मिकता से ओ़त प्रोत है और मैंने इसमें समलैंगिकता का मसला जबरदस्ती घुसेड दिया है. पर इसकी इतनी चर्चा है की अब हर सम्बन्ध को इसी तराजू पर तौलने की कोशिश हो रही है. पर आपकी रचना पर टिपियाने का कोई इरादा नहीं था मेरा, न ही मेरी यह आदत है पर भूल की और ध्यान दिलाने का धन्यवाद.

स्वप्न मञ्जूषा 17 जुलाई 2009 को 9:12 pm बजे  

बहुत सुन्दर भजन सुनवाया आपने ....

ज्योति सिंह 25 जुलाई 2009 को 11:21 pm बजे  

अदा जी बहुत सुन्दर बाते कही मैं भी सहमत हूँ या यू कहे उसे दोहराती हूँ .रचना सुन्दर है .

" रोमन[अंग्रेजी]मेंहिन्दी-उच्चारण टाइप करें: नागरी हिन्दी प्राप्त कर कॉपी-पेस्ट करें "

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" उन्मुक्त हो जायें "



हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



कदमों के निशां

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