रविवार, 19 जुलाई 2009

'' संवेदनाएं - 3 ''






संवेदनाएं -3
''मंत्रविद्ध ''

हाय सारी अनुभूतियाँ मंत्रविद्ध सी ,
निश्चल हो गयीं, स्वर-वाणी भी खोयी ;
भाव-सागर में जो मैं डूबा फिर उतराया,
संवेदनाओं की आंधी में मेरा शब्दकोष छितराया ||
********************************************
कलम है ,ख्याल है , बता ये किस के दिल का हाल है ?


घुमाई जो गर्दन,तेरी नज़र से निगाह मिली ,
अपना अक्स साफ नजर आया ,
आईना था कोई सामने ,
मेरी निगाहों का भरम कोई या तेरी आँखों का ज़लाल था ,
खुदा खैर करे क्या कमाल,तेरी आँखों में मेरे दिल का हाल था |




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5 टिप्पणियाँ:

दिगम्बर नासवा 20 जुलाई 2009 को 1:32 pm बजे  

लाजवाब लिखा है आपने.............

निर्मला कपिला 21 जुलाई 2009 को 6:19 pm बजे  

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है देर बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ आभार्

alka sarwat mishra 25 अगस्त 2009 को 3:18 pm बजे  

सचमुच खुदा खैर करे.....जब इनकी आँखों में उनके दिल का हाल हो
खैरियत बताते रहियेगा
भवनाओं की अभिव्यक्ति बड़े जोरदार ढंग से हुई है
सादर बधाई स्वीकारें

Randhir Singh Suman 26 सितंबर 2009 को 7:16 pm बजे  

तेरी आँखों में मेरे दिल का हाल था | nice

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" उन्मुक्त हो जायें "



हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



कदमों के निशां

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