सोमवार, 27 अक्तूबर 2008

" मिल-जुल - मन का दीप -पर्व "

आओ अबकी ऐसा दीप-पर्व मनाएँ ,  
ऐसा दीप-पर्व मनायें ,  
मिल-जुल-मन सुबह के गीत गायें ,  
हर नयन नयन , रोशनी की आस जगाये ,  
संघर्ष दीप जला,आने तक सूरज धर्म निभायें  
आओ ऐसा दीप पर्व मनायें |  
आओ, गूँथ ह्रदय-बुद्धि-मन की माटी,  
इक दीप बनाएं ,  
अनुभूति-संवेदनाओं के तेल से ,  
इक दीप भराएँ ,  
ले,परस्पर गुंथीं विश्वास डोर की बाती  
इक दीप सजाएं ,  
आओ ऐसा दीप पर्व मनायें ||  
ना हो किसी की 'निः आस ' घनेरी
हर घर ,राह -चौबारे आशाओं का ,
इक दीप जलाएं
अब कि ऐसा दीप पर्व मनाएँ ,
ऐसा दीप पर्व मनायें ||


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गुरुवार, 16 अक्तूबर 2008

" अपनी ज़िन्दगी : :अपनी धूप "

हर इक को,
अपने हिस्से की धूप मिली ;
किसी को मिला घनेरा साया ,
किसीको मिली जेठ दुपहरी ;
ज़िन्दगी क्या खूब मिली खूब मिली,
बहुत खुब मिली | |


ईश्वर भी छिपता ना फिरता ,
इंसानों से आज ;
स्वर्ग से गर ' हव्वा 'संग उसे भी,
निकाला ना होता:
स्वर्ग नया हुई तब से ये धरती
जहाँ उनदोनो को ;
ज़िन्दगी क्या खूब मिली,खूब मिली ,
बहुत खूब मिली ||

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शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

अंतर्यात्री


कुछ अलग सा


यारो बनाओ मत मुझे मसीहा ,अंजाम मुझे मालूम है ;
हर मुल्क ओ दौरां में ,कत्ल होना ही गांधी का नसीब है ।।

हर दौर ए ईसा की तकदीर मुझे मालूम है ;
ख़ुद के कांधो पर उठाये फिरना ,अपना ही सलीब है ।।1।।

किस्मत है भटकना अब ,हर दौर ए मूसा की ;
अपनी रूह की परछाइयो का कारवां लिए।

जरूरी नही हर कारवां को ,अब कोह ए तूर कोई मिले: गर मिले भी लाजमी नही ,आतिशे नूर भी मिले ॥2॥


मत मांगना किसी दुख्तर ए हव्वा से ;
सीता सी अग्नि परीक्षा ,पाकीजगी के सुबूत में।

न सजा पाओगे अग्निकुंड , जी उठेगा यक्ष प्रश्न;
क्या ? राम सी मर्यादा किसी और ने भी निभाई है ॥3॥

महाभारत के सफर में ,यह बात नजर आयी है ;
क्या सहेगा कोई 'कर्ण ' की जिल्लतें औ रुसवाईयाँ ।

तन्हाईयों की "समर ",देना मत अब कभी दुहाईयाँ ;
दौर ए अदम में कौन जी सकेगा 'भीष्म" की तन्हाईयाँ ॥4॥



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                         कबीरा खड़ा बाज़ार में ,लिए लुकाठी हाथ
 
जो फूँके घर आपणा, चले हमारे साथ
निंदक नेणे राखिये
आँगन कुटी छवाये

रहिमन धागा प्रेम का , तोड़ो मत चटकाय : :
टूटे फिर न जुड़े , जुड़े तो गाँठ पड़ जाए

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विजेट आपके ब्लॉग पर

TRASLATE

Translation

" उन्मुक्त हो जायें "



हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
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फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



कदमों के निशां

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