शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2008

अंतर्यात्री


कुछ अलग सा


यारो बनाओ मत मुझे मसीहा ,अंजाम मुझे मालूम है ;
हर मुल्क ओ दौरां में ,कत्ल होना ही गांधी का नसीब है ।।

हर दौर ए ईसा की तकदीर मुझे मालूम है ;
ख़ुद के कांधो पर उठाये फिरना ,अपना ही सलीब है ।।1।।

किस्मत है भटकना अब ,हर दौर ए मूसा की ;
अपनी रूह की परछाइयो का कारवां लिए।

जरूरी नही हर कारवां को ,अब कोह ए तूर कोई मिले: गर मिले भी लाजमी नही ,आतिशे नूर भी मिले ॥2॥


मत मांगना किसी दुख्तर ए हव्वा से ;
सीता सी अग्नि परीक्षा ,पाकीजगी के सुबूत में।

न सजा पाओगे अग्निकुंड , जी उठेगा यक्ष प्रश्न;
क्या ? राम सी मर्यादा किसी और ने भी निभाई है ॥3॥

महाभारत के सफर में ,यह बात नजर आयी है ;
क्या सहेगा कोई 'कर्ण ' की जिल्लतें औ रुसवाईयाँ ।

तन्हाईयों की "समर ",देना मत अब कभी दुहाईयाँ ;
दौर ए अदम में कौन जी सकेगा 'भीष्म" की तन्हाईयाँ ॥4॥



8 टिप्पणियाँ:

E-Guru Rajeev 4 अक्तूबर 2008 को 8:14 pm बजे  

आपका लेख पढ़कर हम और अन्य ब्लॉगर्स बार-बार तारीफ़ करना चाहेंगे पर ये वर्ड वेरिफिकेशन (Word Verification) बीच में दीवार बन जाता है.
आप यदि इसे कृपा करके हटा दें, तो हमारे लिए आपकी तारीफ़ करना आसान हो जायेगा.
इसके लिए आप अपने ब्लॉग के डैशबोर्ड (dashboard) में जाएँ, फ़िर settings, फ़िर comments, फ़िर { Show word verification for comments? } नीचे से तीसरा प्रश्न है ,
उसमें 'yes' पर tick है, उसे आप 'no' कर दें और नीचे का लाल बटन 'save settings' क्लिक कर दें. बस काम हो गया.
आप भी न, एकदम्मे स्मार्ट हो.
और भी खेल-तमाशे सीखें सिर्फ़ 'ब्लॉग्स पण्डित' पर.

shama 4 अक्तूबर 2008 को 9:30 pm बजे  

Zabardast alfaaz hain...andartak bhid gaye..."... gaandheeka naseeb hai". kitna sahee hai..."lazim nahee ke atishe noor mile"...kitnee panktiyan dohraun??
Anek shubhkamnaon sahit swagat hai...
word verification please nikal daliye ye vinamr binatee hai!

प्रदीप मानोरिया 5 अक्तूबर 2008 को 9:27 am बजे  

तन्हाईयों की "समर ",देना मत अब कभी दुहाईयाँ ;
दौर ए अदम में कौन जी सकेगा 'भीष्म" की तन्हाईयाँ ॥4॥
जबरदस्त अल्फाज़ भारी बात बधाई हिन्दी चिटठा जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है मेरा आमंत्रण स्वीकारें मेरे चिट्ठे पर भी पधारे

युग-विमर्श 6 नवंबर 2008 को 3:21 pm बजे  

प्रिय बन्धु,
आपका आदेश हुआ हाज़िर हो गया. प्रशस्तियाँ तो आपको मिल ही रही हैं.मैं क्या राय दूंगा. हाँ एक बात. आपने 'आतिशे-नूर' का प्रयोग किया है. नूर वह प्रकाश होता है जिसमें अग्नि नहीं होती, केवल चका-चौंध कर देने वाली चमक होती है. जिसकी ताब मूसा के साथी न ला सके और बेहोश हो गए. जिन्नातों की सृष्टि अग्नि-तत्व से हुई है और फरिश्तों की सृष्टि नूर-तत्व से.

!!अक्षय-मन!! 25 नवंबर 2008 को 12:40 am बजे  

जितना कहूंगा उतना कम है अभी इस काबिल नही इतनी ऊँची रचना पर अपनी राय दे सकूं....
बहुत ही शुभांग दर्शन हैं बस इतना ही कहना चाहूंगा......



मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आने के लिए
आप
๑۩۞۩๑वन्दना
शब्दों की๑۩۞۩๑
सब कुछ हो गया और कुछ भी नही !!
इस पर क्लिक कीजिए
मेरी शुभकामनाये आपकी भावनाओं को आपको और आपके परिवार को
आभार...अक्षय-मन

हिन्दीवाणी 25 नवंबर 2008 को 2:08 am बजे  

बहुत-बहुत बधाई। समय निकालकर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें।

vimi 2 दिसंबर 2008 को 10:48 am बजे  

I am bereft of words to convey how moved I am after reading what you have written

अभिषेक मिश्र 7 जुलाई 2009 को 2:47 pm बजे  

हर शब्द बिलकुल करीने से संजो कर तैयार की गई अद्भुत रचना. भावों की समानार्थी एक और रचना कहीं पढ़ी थी, कहाँ याद नहीं आ रहा !

" रोमन[अंग्रेजी]मेंहिन्दी-उच्चारण टाइप करें: नागरी हिन्दी प्राप्त कर कॉपी-पेस्ट करें "

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हर व्यक्ति अपने मन के ' गुबारों 'से घुट रहा है ,पढ़े लिखे लोगों के लिए ब्लॉग एक अच्छा माध्यम उपलब्ध है
और जब से इन्टरनेट सेवाएं सस्ती एवं सर्व - सुलभ हुई और मिडिया में सेलीब्रिटिज के ब्लोग्स का जिक्र होना शुरू हुआ यह क्रेज और बढा है हो सकता हैं कल हमें मालूम हो कि इंटरनेट की ओर लोगों को आकर्षित करने हेतु यह एक पब्लिसिटी का शोशा मात्र था |

हर एक मन कविमन होता है , हर एक के अन्दर एक कथाकार या किस्सागो छुपा होता है | हर व्यक्ति एक अच्छा समालोचक होता है \और सभी अपने इर्दगिर्द एक रहस्यात्मक आभा-मंडल देखना चाहतें हैं ||
एक व्यक्तिगत सवाल ? इमानदार जवाब चाहूँगा :- क्या आप सदैव अपनी इंटीलेक्चुएलटीज या गुरुडम लादे लादे थकते नहीं ?

क्या आप का मन कभी किसी भी व्यवस्था के लिए खीज कर नहीं कहता
............................................

"उतार फेंक अपने तन मन पे ओढे सारे भार ,
नीचे हो हरी धरती ,ऊपर अनंत नीला आकाश,
भर सीने में सुबू की महकती शबनमी हवाएं ,
जोर-जोर से चिल्लाएं " हे हो , हे हो ,हे हो ",
,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
फिर सुनते रहें गूंज अनुगूँज और प्रति गूंज||"

मेरा तो करता है : और मैं कर भी डालता हूँ

इसे अवश्य पढें " धार्मिकता एवं सम्प्रदायिकता का अन्तर " और पढ़ कर अपनी शंकाएँ उठायें ;
इस के साथ कुछ और भी है पर है सारगर्भित
बीच में एक लम्बा अरसा अव्यवस्थित रहा , परिवार में और खानदान में कई मौतें देखीं कई दोस्त खो दिये ;बस किसी तरीके से सम्हलने की जद्दोजहद जारी है देखें :---
" शब्द नित्य है या अनित्य?? "
बताईयेगा कितना सफल रहा |
हाँ मेरे सवाल का ज़वाब यदि आप खुले - आम देना न चाहें तो मेरे इ -मेल पर दे सकते है , ,पर दें जरुर !!!!



कदमों के निशां

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